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॥ सर्वार्थसिदिवनानका पंडित जयचंदजीकृता ॥ षष्ठ अध्याय ॥ पान ४७९॥
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॥ नमः सिडेभ्यः॥ ॥ आगे छठे अध्यायका प्रारंभ है ॥ दोहा- मोह राग रुष भाव ये, निश्चय आश्रय तीनि ॥
हति ध्यानी ज्ञानी भये, नमूं तिनहि गुणलीन ॥ १॥ ऐसें मंगलाचरणके अर्थि नमस्कार करि सर्वार्थसिद्धि नाम टीकाके अनुसार कहिये है। तहां पंचम अध्यायमें अजीवपदार्थका व्याख्यान किया । अब ताके अनंतर आसवपदार्थका व्याख्यान किया चाहिये । ता तिस आस्रवपदार्थकी प्रसिद्धिके अर्थि सूत्र कहें हैं
॥कायवाङ्मनःकर्म योगः ॥१॥ ___याका अर्थ- काय वचन मन इनका कर्म सो योग है । तहां काय आदि शब्दनिका अर्थ | तो पहले कहा था, सोही जानना । बहुरि कर्मशब्दका अर्थ इहां क्रिया है । जातें कर्म अरु क्रियामें | | इहां भेद नाहीं है। ऐसे काय वचन मनकी क्रिया है सो योग है। तहां ऐसा जानना, जो,
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