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। सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ पंचम अध्याय ॥ पान ४७७ ।। एक द्रव्यार्थिक दोय भेदरूप पर्यायार्थिक, तथा द्रव्यार्थिक दोय पर्यायार्थिक एक, ऐसें दोय भंग तीनिके हैं । बहुरि दोयदोंय गिनियें तब च्यारिभी नय होय हैं । बहुरि द्रव्यार्थिकके नैगम संग्रह व्यवहार ए तीनि भेद , पर्यायार्थिकके अर्थ व्यंजन पर्यायकरि दोय भेद ऐसे पांचभी हैं। बहुरि द्रव्यके शुद्ध अशुद्ध दोय भेद, पर्यायार्थिकके ऋजुसूत्र शब्द समभिरूढ एवंभूत च्यारि भेद ऐसे छहभी नय होय हैं । बहुरि नैगम आदि सात कही हैं । ऐसेंही अष्ट आदिकी संख्याभी होती जाय है । जाते शब्द अपेक्षा नय संख्यात कही है । ऐसें गुणपर्यायका कथंचित् भेदरूप कथन है, सो अयुक्त नाहीं है । गुणपर्ययव्य है.ऐसा लक्षण द्रव्यका निर्दोष है ॥
ऐसें इस पांचवां अध्यायमैं पंचास्तिकाय छह द्रव्यका तथा तिनके भेदसहित गुणपर्यायनिका निरूपण कीया, ताका व्याख्यान सर्वार्थसिद्धि नाम संस्कृतटीकाते देखि देशकी भाषामय वचनिका करी है। ताळू वाचि सुनिकरि भव्यजीव तिनका यथार्थस्वरूप जानि श्रद्धा करो, चारित्रकी शुद्धता करो । ऐसें स्वर्गमोक्षका मार्ग सुगम होय है । बहुरि याका विशेष व्याख्यान तत्वार्थवार्तिक तथा . श्लोकवार्तिकविर्षे है। तहां स्वमतका स्थापन परमतका निराकरणरूप बहुत व्याख्यान है। तहांतें जानना ॥
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