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॥ सर्वार्थसिद्धिपचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ पंचम अध्याय ॥ पान ४७५ ।।
कहिये तो तिन स्कंधनिकै गुणपणां ठहरता। तातें निर्गुण कहने ते तिनके गुणका निषेध" भया ते स्कंधभी गुणसहित हैं, तातें द्रव्यही हैं, गुण नाहीं हैं । बहुरि द्रव्याश्रयी इस विशेषणते पर्यायनिक गुणाका निषेध होय है । जातें गुण हैं ते तो द्रव्यर्ते नित्यसंबंधरूप हैं । पर्याय हैं ते क्रमतें होय । सो कदाचित् होय विनशि जाय हैं । तातें जे नित्यही द्रव्यकूं आश्रयकरि प्रवर्तेते गुण हैं । ऐसें पर्याय हैं ते गुण नाहीं हैं। तहाँ जीवके गुण अस्तित्व आदिक तौ साधारण । बहुरि ज्ञानादिक असाधारण | पुद्गल के अचेतनत्व आदि साधारण । रूप आदिक असाधारण बहुरि पर्याय जीव घटका ज्ञान आदिक हैं । पुद्गलके घटकपाल आदिक हैं ।
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आगे पूछे हैं, बारवार परिणामशब्द कह्या ताका कहा अर्थ है? ऐसें पूछें उत्तरका सूत्र कहे हैं॥ तद्भावः परिणामः ॥ ४२ ॥
याका अर्थ- द्रव्य जिस स्वरूप परिणमे, ताकूं जिनका भाव कहिये, ऐसा तद्भाव है, सो परिणाम है । इहां इस सूत्र कहनेका अन्यप्रयोजन कहै हैं । गुण हैं ते द्रव्यतें जुदे पदार्थ हैं, ऐसा अन्य कोईका मत हैं । सो स्याद्वादीनिक अन्यमती कहे हैं । तुमारे यह मान्य है कि नाहीं ? ताकुं आचार्य कहें हैं, जो तुम मानूं जैसें तौ जुदा पदार्थ नाहीं मानें हैं, कथंचित् संज्ञासंख्यादि
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