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॥ सर्वाथसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ।। पंचम अध्याय ॥ पान ४७४ ॥
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आगें, परिणामादिकरि जान्या जाय ऐसा व्यवहारकालके जानने` प्रमाण कहा है? ऐसें पूछे सूत्र कहै हैं
॥ सोऽनन्तसमयः ॥४०॥ याका अर्थ- काल है सो अनंत हैं समय जाके ऐसा है । इहां वर्तमानकाल एक समयमात्र है। तौऊ अतीत अनागत कालके समय अंतरहित हैं। तातें अनंत कहिये है । 'अथवा मुख्यकालकाही प्रमाण जानन· यह सूत्र है। जो, कालाणु एक है तौऊ अनंतपर्यायनिकू वर्तनाका कारण हैं। तातें ताकेविर्षे अनंतपणाको उपचार कीजिये है। बहुंरि समय है सो उत्कृष्टपणे कालका अंश है। तिसका समूहविशेषक् आवली इत्यादि जाननी ॥ आगें, गुणपर्ययवद् द्रव्य है ऐसा कह्या, तहां गुण कहा ? ऐसें पूछे सूत्र कहे हैं
॥द्रव्याश्रया निर्गुणा गुणाः ॥४१॥ याका अर्थ- जिनका द्रव्य आश्रय है बहुरि जे आप अन्यगुणनिकरि रहित हैं, ते गुण हैं। इहां निर्गुण ऐसा गुणनिका विशेषण है, सो कौन अर्थि है सो कहिये है। दोय आदि परमाणुनिका स्कंधभी-द्रव्यकै आश्रय है । जाते परमाणुनित भया है सो व्याश्रया गुणा एताही
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