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|| सर्वार्थसिद्धिवचनका पंडित जयचंदजीकृता । चतुर्थ अध्याय || पान ३९४ ॥
पहले सूत्र कम थोरे अक्षरनिमें कही जाय है, तातैं इहां ताकूं कहनेकूं सूत्र कहै हैं॥ नारकाणां च द्वितीयादिषु ॥ ३५ ॥
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याका अर्थ - इहां चशद्ध है सो इसतें पहले सूत्र का ताका समुच्चयके अर्थ है । तातें अर्थ होय है, जो, रत्नप्रभाविषै नारकीनिकी उत्कृष्टस्थिति एकसागरकी कही है, शर्करा - भावि जघन्यस्थिति है | बहुरि शर्कराप्रभाविषै उत्कृष्टस्थिति तीनि सागरकी कही है, सो वालुकाप्रभावि जयस्थिति है । ऐसेंही महातमःप्रभा सातवी पृथ्वीताई जानना || आगें दूसरी आदि पृथिवीविर्षे जघन्यस्थिति कही, तो पहली पृथिवीविषै जघन्यस्थिति कहा है ? ऐसें पूछै ताके दिखावनेकूं सूत्र कहै हैं-
॥ दशवर्षसहस्राणि प्रथमायाम् ॥ ३६ ॥
यांका अर्थ-- इहां अपरा शब्दकी अनुवृत्ति है । तातें जघन्य जानती । सो पहली पृथिवी रत्नप्रभाविषै नारकीनिकी जघन्यस्थिति दशहजारवर्षकी है ॥
आगे भवनवासी देवनिकी जघन्यस्थिति कही सो सूत्र कहै हैं ॥
॥ भवनेषु च ॥ ३७ ॥
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