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॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ पंचम अध्यायः ॥ पान ४५३ ॥ परमाणुनिके स्कंधनिकी उत्पत्ति है । बहुरि तैसें स्कंधनिके भेद होते दोय प्रदेशके स्कंधताई स्कंध उपजै है । बहुरि ऐसेही कोई स्कंधका तो भेद हुवा अरु अन्य स्कंधते तिसही काल संघात हुवा, ऐसें भेदसंघात स्कंध उपजै हैं । ऐसें स्कंधनिकी उत्पत्ति कही ॥ आगें परमाणुनिकी उत्पत्तिका कारण दिखावनेकू सूत्र कहें हैं
॥भेदादणुः ॥ २७॥ याका अर्थ- परमाणु है सो भेदहीतें उपजै है, संघात नाही उपजै है । इहां अणु भेदहीतें उपजै है, ऐसी सिद्धी तो पहले सूत्रकी सामर्थ्यहीतें होय है । फेरि यह सूत्र है सो अणुभेदहीतें होय है, संघाततें नाहीं होय है, ऐसा नियमके अर्थि है । जाते व्याकरणविर्षे परिभाषासूत्र ऐसैं | है, सो सिद्ध भये पीछे फेरि जाकी विधि करिये सो नियमके अर्थि है, ऐसें जानना ॥
___ आगें पूछे है, जो संघाततेही स्कंधनिकी उत्पत्ति सिद्ध भई बहुरि भेदसंघातग्रहणका कहा. प्रयोजन है ? ऐसे पू॰ ताका प्रयोजन दिखावनेकू सूत्र कहें हैं
॥ भेदसंङ्घाताभ्यां चाक्षुषः ॥ २८॥ याका अर्थ- नेत्रगोचर जो स्कंध होय है सो भेदसंघात दोऊतें होय है । स्कंध है सो अनं
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