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॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ पंचम अध्याय ।। पान ४५७ ।।। जान्या, सो कही? ऐसें पूछे सूत्र कहै हैं
___॥ तद्भावाव्ययं नित्यम् ॥ ३१ ॥ - याका अर्थ- तद्भाव कहिये जो पहले समय होय सोही दूसरे काल होय सो तद्भाव है, सोही नित्य कहिये । जो पूर्वं था सोही यहू अब वर्तमानमें है ऐसा जोडरूप ज्ञान सो प्रत्यभिज्ञान कहिये । तिसका कारण जो वस्तुमें भाव सो तद्भाव कहिये । यह प्रत्यभिज्ञान है । सो विनाहेतु अकस्मात् न होय है । वस्तुमैं तद्भाव है ताकू जाने है, तातें यह सिद्ध होय है, जो, जिस स्वरूपकरि पहले वस्तु देख्या तिसही स्वरूपकरि वर्तमानविर्षेभी देखिये है । जो पहले था, ताका अ. भावही भया मानिये । बहुरि नवाही उपज्या मानिये तौ स्मरणका अभाव होय, तब जो स्मरणके आधीन लोकव्यवहार सो विरोध्या जाय है । तातें ऐसा निश्चय है, जो, तद्भावकरि अव्ययरूप है सो नित्य है । सो यहू कथंचित् जानना । सर्वथा नित्य कहतें कूटस्थके पर्याय पलटनेका अभाव ठहरे है । तब संसार तथा तिसकी निवृत्तिके कारणका विधानका विरोध आवै । इहां तर्क, जो,
सोही वस्तु नित्य सोही अनित्य ऐसे कहनेमें तौ विरोध है । ताका समाधान करै है, जो, यह || विरुद्ध नाहीं है । जातें ऐसा कहिये है, ताका सूत्र कहें हैं
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