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॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ पंचम अध्याय ॥ पान ४६८ ॥ है, ऐसा प्रत्ययका अर्थ है । इहां मतुप्प्रत्ययकी उत्पत्तिके विर्षे प्रश्नका समाधान पूर्व किया, सोही है । कथंचित् भेदाभेद होते मतुप्प्रत्यय बणै है । बहुरि इहां पूछे है, गुण कहा तथा पर्याय कहा ? ताका उत्तर, अन्वयी तौ गुण है व्यतिरेकी पर्याय है। तहां क्रमवर्ती पर्यायनिमें जोडरूप एक चल्या जाय सो तौ गुण है । बहुरि न्यारेन्यारे स्वभावरूप पर्याय हैं । इन गुणपर्यायनिकरि युक्त होय सो द्रव्य है । इहां उक्तं च गाथा है ताका अर्थ- गुण ऐसा तो द्रव्यका विधान है बहुरि गुणका एक समुदाय सो द्रव्य है बहुरि द्रव्यके विकार कहिये क्रमपरिणाम ते पर्याय हैं ऐसा कह्या है। बहुरि तिनकरि अन्यून कहिये सहित द्रव्य है सो कैसा है ? अयुतप्रसिद्ध है संयोगरूप नाही, तादात्मक स्वरूप है बहुरि नित्य है अपने विशेषलक्षणकू कबहूं नाहीं छोडै है ।।
___ इहां ऐसा कह्या, जो, द्रव्य है सो अन्यद्रव्यतें जाकरि विशेषरूप होय जुदा दीखै तिस भावकू गुण कहिये । तिस गुणहीकरि द्रव्यकी विधि है, जो, ऐसा गुण न होय तो द्रव्यनिका | संकर कहिये पलटना ठहरै । जैसे जीव है सो पुद्गलादिक द्रव्यनितें ज्ञानआदि गुणनिकरि न्यारा है
दीखे है । बहुरि पुद्गल आदि द्रव्य हैं, ते जीवद्रव्यतॆ रूप आदि गुणनिकरि न्यारे दीखे हैं। जो है| ऐसा विशेषगुण न होय तो आपसमें पलटना तथा एकता ठहरै । तातें सामान्य अपेक्षाकरि अन्वयी
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