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॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ पंचम अध्याय ॥ पान ४०८ ॥
आगे कहे है कि, धर्मादिककै लगताही द्रव्याणि ऐसा सूत्र कह्या तातैं ए च्यारिही द्रव्य हैं, ऐसा प्रसंग होतें अन्यभी द्रव्य हैं, ऐसा सूत्र कहे हैं
॥ जीवाश्च ॥ ३ ॥
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याका अर्थ - जवि हैं ते द्रव्य हैं । तहां जीवशब्दका अर्थ तौ पहले कह आये सो जानना । बहुरि बहुवचन है सो कहे जे जीवके भेद ताकूं जाननेकूं है । बहुरि चशब्द है सो द्रव्यसंज्ञाकूं ग्रहण करावे है । तातें ऐसा अर्थ होय है, जो, जीव हैं तेभी द्रव्य हैं, ऐसें ए आगें कहेंगे जो कालद्रव्य ताकरि सहित छह द्रव्य हैं । बहुरि द्रव्यका लक्षणभी 'गुणपर्यायवत् द्रव्य' ऐसा कहेंगे तिस लक्षणके संबंध धर्म अधर्म आकाश जीव पुद्गल काल इन छहहुनिकूं द्रव्य नाम कहिये हैं । बहुरि इनकी गणती कछू अर्थ नाहीं । बहुरि गणती है सोभी नियमके अर्थ है, द्रव्य छहही हैं । अन्यवा दीनिकर कल्पे जे पृथ्वी आदिक नव द्रव्य तिनका निषेध है । जातें पृथ्वी अप तेज वायु मन ते तौ रूप रस गंध स्पर्शवान् हैं, तातें पुद्गलद्रव्यविषै गर्भित हैं |
इहां कहै, वायुमनकें रूपादिका योग नाही दीखे है । ताकूं कहिये, वायु तौ स्पर्शवान है सो रूपादिकतें अविनाभावी है। जहां स्पर्श है तहां रूपादिक होयही होय, यह नियम है । जैसे
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