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॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ पंचम अध्याय ॥ पान ४०७ ॥ जुदा नाम न ठहरै । गुणनिका समुदायही कहिये तो द्रव्य कहां? बहुरि भेद मानिये तो पूर्वोक्त दोष आवै समुदाय तौ जुदा ठहखाही । गुणनिका समुदाय काहेदूं कहिये? बहुरि वादी कहै, जो तुमभी कहो हो, जो गुणनिकू प्राप्त होय तथा जो गुण जाळू प्राप्त होय, सो द्रव्य है। सो ऐसे कहेभी तुम गुणनिके समुदायमें दोष बताया सोही तुमारै आवेगा। ताकू कहिये हमारे दोष नाहीं
आवेगा। जातें हम कथंचित् भेद कथंचित् अभेद माने हैं। तातें द्रव्यका व्यपदेश कहिये नामकी सिद्धि होय है । तहां गुण अरु द्रव्य जुदे नाहीं दीखै है, तातें अभेद है ॥
बहुरि संज्ञा संख्या लक्षण प्रयोजन आदिके भेदकरि भेद है। बहुरि द्रव्यशब्दकै बहुवचन | है सो धर्मआदि द्रव्य बहुत हैं, तातें समान आधारका योग है । इहां कोई कहै, तुम संख्याकी अनुवृत्ति ले बहुवचन कह्या है, तो लिंगकी अनुवृत्ति चाहिये, धर्मादिककै पहले सूत्रमें पुरुषलिंगका बहुवचन है, इहां नपुंसकलिंग कैसे ? ताकू कहिये, इहां द्रव्यशब्द है सो नपुंसकलिंगही है । सो अपने लिंगकू न छोडे है, तातें नपुंसकलिंगही युक्त है । ऐसें धर्मादिक द्रव्य हैं । इहां कोई कहै है, द्रव्य गुण पर्याय ए तीनि कहे ते जुदे जुदे हैं । सो ऐसें नाहीं। इनकै प्रदेशभेद तौ नाहीं हैं। | अर संज्ञा संख्या लक्षण प्रयोजनादिककरि भेदभी कहिये हैं ।
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