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॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ पंचम अध्याय ॥ पान ४१८॥ ताका समाधान, जो, सर्वज्ञका ज्ञान क्षायिक है सातिशय है, तातें ताकू जानकरि अनंत कह्या है। जाके ज्ञानमें तौ सान्तही है, परंतु गणना करि अनंत है । अथवा अनंत ऐसा गणनाकू सर्वमतके माने हैं। कोई कहै लोक धातु अनंत है । कोई कहै हैं, दिशा काल आत्मा आकाश अनंत हैं। केई कहै है, प्रकृति पुरुषकै अनंतपणा है । तातें ऐसा न कहिये, जो, अनंतपणा जाकू न जानिये सो है । अरु जाकू जानिये ताकू अंतसहित कहिये ॥ ___ इहां अन्यमती कहै, जो, आकाश सर्वगत है, तातें निरंश है । ताकू कहिये, यह अयुक्त है। तातें ऐसा नियम नाहीं, जो सर्वगत होय सोही निरंश होय, परमाणु असर्वगत है सोभी निरंश होहै । बहुरि जैसे वस्त्र बडा होय ताळू गज आदिकरि मापिये तब एकही वस्त्र बहुत गजका कहिये , तब अंशसहितभी भया अरु निरंशभी भया । बहुरि तिसही वस्त्रविर्षे अनेक जुदीजुदी जायगा जुदीजुदी वस्तु देखिये तब जुदाजुदा अंश प्रगट देखिये है; तैसें आकाशभी सर्वगत है, तोऊ परमाणुद्रव्यकरि मापिये तब अनंत अंश होय तिनकू अनंतप्रदेश कहिये । तव अनेक घट मंदिर ग्राम नगरादि जामें वसैं हैं तहां घटका आकाश ग्रामका आकाश नगरका आकाश ऐसा देखिये है । तातें एकही आकाश | द्रव्यनयकरि एक है निरंश है, पर्यायनयकरि अंशसहित है ।
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