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॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ पंचम अध्याय ॥ पान ४३१ ॥ परोक्ष पदार्थ मानिये है । प्रत्यक्ष न देखनेतें इनका अभाव मानिये, तो अन्यमतमें जे परोक्ष वस्तु मानिये हैं, तिनकाभी अभाव ठहरैगा । बहुरि हमारे स्यादादीनिके मतमें सर्वज्ञ इनकू प्रत्यक्षभी देखें हैं, ऐसें कह्या है, तातें ए प्रत्यक्षभी हैं, तिनके उपदेशतें परोक्ष ज्ञानभी माने हैं । तातें ये हेतु हमप्रति असिद्ध हैं।
आगें पूछे हैं, जो, धर्म अधर्म द्रव्य अतीन्द्रिय हैं, तिनका उपकारके संबंधकरि अस्तित्व निश्चय कीजिये तैसेंही ताकै लगताही कह्या जो आकाशद्रव्य सोही अतीन्द्रिय है। ताके जानने विर्षे कहा उपकार है ? ऐसे पूछे उत्तरसूत्र कहें है
॥ आकाशस्यावगाहः ॥१८॥ याका अर्थ- आकाशद्रव्यका सर्वव्यनिकू अवगाह देना उपकार है । इहां उपकारशदकी अनुवृत्ति लेणी। जीवपुद्गल आदि जे द्रव्य अवगाह करनेवाले हैं, तिनकू अवकाश देना आकाशका उपकार है। इहां तर्क, जो, जीवपुद्गल क्रियावान हैं, ते अवगाह करनेवाले हैं, तिनकू अवकाश
देना युक्त है । बहुरि धर्मास्तिकाय आदिक तौ निष्क्रिय हैं, बहुरि नित्यसंबंधरूप हैं, तिनकों | कैसे अवगाह दे है ? ताका समाधान, जो, इहां उपचार अवकाश देना प्रसिद्ध है, तैसें आकाश
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