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॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ।। पंचम अध्याय ॥ पान ४४५ ॥ णाम तिष्ठै है, कि नाही? जो तिष्ठे है, तो एक परिणाम एककालमें है सोही है, तामें दूजा परि णाम नाहीं । बहुरि नाही तिष्ठे है, तो अभाव आया। तहांभी सोही उत्तर, जो, द्रव्य है सो त्रिकालस्वरूप है, सो क्रमतें होतें जे परिणाम तिनमें एककाल एकही परिणाम है, सो पर्याय कहिये । जब द्रव्यदृष्टिकरि देखिये तब सर्वपरिणामनिकी शक्ति लिये द्रव्य कहिये, तिनकी शक्ति क्रमतेही होय है । सो शक्तिअपेक्षा सर्वपरिणाम द्रव्यमें तिष्ठे हैं, व्यक्तिअपेक्षा एककाल एक है, तामें दूजी नाहीं है । ऐसें द्रव्यमें तिष्ठभी है, नाहीं भी तिष्ठे हैं । ऐसें स्याहाद जानना । इत्यादि अनेक विधिनिषेधकरि चरचा है। तहां स्यादादही निर्बाधसिद्ध होय, सर्वथा एकान्तपक्ष निर्वाध नाहीं॥
आगें पूछे है, धर्म अधर्म आकाश पुद्गल जीव काल इनका उपकार कहे । बहुरि लक्षणभी कह्या । बहुरि पुद्गलनिका सामान्यलक्षण तो कह्या । अर विशेषलक्षण न कह्या । सो कहा है ? ऐसें पू0 सूत्र कहै हैं
॥ स्पर्शरसगन्धवर्णवन्तः पुद्गलाः ॥ २३ ॥ याका अर्थ- पुद्गल हैं ते स्पर्श रस गंध वर्ण इन च्यारि गुणनिकरि सहित हैं। तहां जाकं स्पर्शिये अथवा जो स्पर्शना सो स्पर्श है, सो आठप्रकार है। कोमल कठिन भाऱ्या हलका
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