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॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता॥ पंचम अध्याय ॥ पान ४०२॥
॥ॐ नमः सिद्धेभ्यः॥ ॥ आगै पंचम अध्यायका प्रारंभ है॥ ॥ दोहा ॥ सकल द्रव्य पर्यायकू जानि तजे रुषराग ॥
अद्भुत अतिसैं जिन धरे नमूं ताहि बडभाग ॥१॥ ऐसें मंगल करि पंचम अध्यायकी वचनिका लिखिये है। तहां सर्वार्थसिद्धि नाम संस्कृतटीकाका कर्ता कहै है। जो, सम्यग्दर्शनके विषयभावकरि कहे जे जीवआदि पदार्थ, तिनविर्षे जीवपदार्थका तो व्याख्यान किया। अब आगें अजीव नामा पदार्थ विचारविर्षे प्राप्त हवा, ताका नाम तथा भेद कहनेकू सूत्र कहें हैं
॥ अजीवकाया धर्माधर्माकाशपुद्गलाः ॥ १॥ याका अर्थ-धर्म अधर्म आकाश पुद्गल ए अजीवकाय हैं । इहां कायशब्द है सो शरीरका | अर्थमें है। तौऊ उपचारतें इहां अध्यापरोण किया है। जैसें शरीर पुद्गलद्रव्यके प्रचय कहिये समूहरूप है, तैसें धर्म आदि द्रव्यभी प्रदेशनिके प्रचयरूप हैं। तातें इनकुंभी कायकीज्यों काय ||
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