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॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ चतुर्थ अध्याय ॥ पान ३९७ ॥
स्थिति कर्मकी विचित्रतासूं हीनाधिक कहिये है, तौ जैसें घट आदि वस्तुनिकी स्थिति कर्मकी अपेक्षा विना है, तेसैंही क्यों न कहो ? ताका समाधान जो, घट आदि वस्तु तौ पुद्गलद्रव्य हैं, इनकें कर्मका बंध उदय नाहीं, तिनकी भी स्थिति प्राणीनिके कर्मके उदयके अनुसारी है । जो ऐसें न मानिये तौ समानकारणतें उपज्या समानकालमें उपज्या समानक्षेत्र में उपज्या समान जिनका आकार ऐसे घटनिकी समान स्थिति चाहिये, सो है नाहीं, तातैं जे घटादिकके भोजनेवाले प्राणी तिनके कर्मके उदयके अनुसार तिनकी भी स्थिति है । निमित्तनैमि तकभावरूप वस्तुस्वभाव है ॥
ऐसें जीवपदार्थका स्वरूपविषै संसारी जीवनिका स्वरूप कह्या ॥ सो प्रथम अध्याय में प्रमाण नय निक्षेप अनुयोगनिका स्वरूप कहिकरि द्वितीय अध्याय में पंचभावरूप आदि जीवपदार्थस्वरूप कया। तीसरे चौथे अध्यायमें इन जीवनिका आधार आदि विशेषका निरूपण किया । जातें जीवपदार्थ है सो एकही अनेकस्वरूप है, तातें द्रव्यपर्यायनिकरि याविषै सर्व अवस्था निर्वाध संभव है । कोई अन्यवादी जीवकूं एकरूपही कहै है, तथा कोई अनेकरूपही कहै, तो ऐसा जीवपदार्थका स्वरूप प्रमाणबाधित है । अब एकही जीव नानास्वरूप कैसे है सो कहैं हैं । जो
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