________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
॥सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ चतुर्थ अध्याय ॥ पान ३८५ ॥ ताकू लोकान्त कहिये, ताविर्षे जो होय ते लोकांतिक कहिये, ऐसे इनका नाम है। तातें पांचवां स्वर्गके अन्य देवनितें ये जुदे हैं, इनका विमान ब्रह्मलोकस्वर्गके अन्तमें है । तथा ए सर्वही एक मनुष्यके भव लेय निर्वाणकू प्राप्त होय हैं ॥ आगें सामान्यकरि कहे जे लौकान्तिक देव तिनका भेद दिखावनेके अर्थि सूत्र कहै हैं
॥ सारस्वतादित्यवह्नयरुणगर्दतोयतुषिताव्याबाधारिष्टाश्च ॥२५॥ याका अर्थ- ए आठ प्रकारके लोकांतिक देव हैं। चशब्दः इनके विमान अन्तरालविर्षे दोयदोय प्रकारके और हैं। ते देव कहा हैं सो कहै हैं। अरुण नामा समुद्रतें उपजा मूलविर्षे संख्यातयोजनका विस्तार जाका ऐसा अंधकारका स्कंध समुद्रका वलयकीज्यों वलयाकार तीव्र है। अंधकाररूप परिणमन जाका ऐसा सो ऊर्द्ध अनुक्रमतें बधता चलता संख्यातयोजनका मोटा होता पंचमस्वर्गका पहला पटलका अरिष्ट नामा विमानके नीचें प्राप्त होय कूकडाकी कुटीकीज्यों मिल गया है । ऐसें अंधकारतें उपरि आठ अंधकारकी पंक्ति उठी हैं। सो अरिष्टविमानकें समान | निकट चारो दिशामें दोयदोय ऐसे आठ तिर्यग् चाली सो लोकके अंतताई गई । तिन अंधकारकी | पंक्तिनिके अंतरालनिविर्षे स्वारस्वत आदि लौकान्तिकनिके विमान हैं, तहां वर्से हैं, सो कहिये हैं ।। ||
ఆranarendుండగకుండdressertainerals
For Private and Personal Use Only