________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ चतुर्थ अध्याय । पान ३८२ ।।
चाहिये । तहां कहिये है, जो व्याकरणविर्षे उत्तरपदतें इस्व होनाभी कह्या है। जैसे दुती ऐसा शब्दका तपरकणविर्षे है। तहां मध्याविलंबिताका उपसंख्यान है, ऐमैं इहांभी जानना । अथवा पीत पद्म शुक्ल ऐसे शब्द वर्णसहित वस्तुके वाचकभी हैं, ते पुरुषलिंगी हैं। तिनकी उपमाभी इन लेश्यानिकू है । ताते उपमितिसमासविर्षे न्हव हैही ॥
ऐसें कोनकें कैसी लेश्या है, सो कहिये है- सोधर्म ऐशानके देवनिकै तौ पीतलेश्या है, ताके मध्यम अंश है । सानत्कुमार माहेन्द्रकें देवनिकै पीतलेश्या है, तथा तहां पद्मभी है । ब्रह्मलोक ब्रह्मोत्तर लांतव कापिष्ट शुक्र महाशुक्र इन तीनि युगलनिविर्षे पद्मलेश्या मध्यम अंश है । शतार सहस्रारविर्षे | पद्मलेश्या तथा शुक्ललेश्या है । आनतआदि अनुत्तरपर्यंत तेरह स्थाननिविर्षे शुक्ललेश्या है। तहांभी अनुदिश अनुत्तरविर्षे परमशक्ललेश्या जाननी। इहां प्रश्न, जो, सानत्कुमार माहेन्द्रविर्षे पीत पद्म दोऊ कही। तथा शतार सहस्रारवि पद्म शुक्ल दोऊ कही । सो सूत्रविषं तो एक एकही कही है, दोऊ कैसे कही हो? ताका समाधान- जो, इहां साहचर्यतें मुख्य है, ताकू सूत्रमें कही है । ताकी साथी गौणकाभी ग्रहण करना । जैसे लौकिकमें राजादिक छत्रधारी गमन करै, तिनकी साथि अन्यभी जाय है। तहां कोई पूछे कौन जाय है? तहां कहै छत्रधारी जाय है। तहां जे
For Private and Personal Use Only