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॥ सवार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ द्वितीय अध्याय ॥ पान २६० ॥ आगें भावेंद्रियकू कहिये हैं । ताका सूत्र--
॥लब्ध्यपयोगौ भावेन्द्रियम् ॥ १८॥ याका अर्थ-- लब्धि उपयोग ए दोऊ भाव इंद्रिय हैं ॥ तहां ज्ञानावरणके क्षयोपशमका विशेषकी प्राप्ति सो लब्धि है। बहुरि जाके निकट होतें आत्मा द्रव्य इंद्रियरूप निवृतिव्यापार करै प्रवर्ते ऐसा जो लब्धि जाकू निमित्त होय ऐसा जो आत्माका परिणाम सो उपयोग है । भावार्थ जो ज्ञेयके आकार परिणमनरूप ज्ञान होय सो उपयोग कहिये ऐसे ए दोऊ भावेंद्रिय हैं । इहां कोई पूछे है , जो, उपयोग तौ इंद्रियका फल है ताकू इंद्रिय कैसै कहिये? ताका समाधान, जो, कारणका धर्म होय ताकू कार्यविभी देखिये है। ऐसै घटकै आकार परिणम्या ज्ञानकू घट ऐसा कहिये ऐसे है । बहुरि इंद्रियशब्दका स्वार्थ है सोभी उपयोगविर्षे मुख्य है तातेभी इंद्रिय कहिये । जैसें इंद्र कहिये आत्मा ताका लिंग होय ताकं इंद्रिय कहिये, सो यहभी अर्थ उपयोगविर्षे मुख्यपणे है । जातें ऐसा कह्या है, जो, उपयोगलक्षण जीव है । सो याते उपयोगकू इंद्रिय कहना न्याय्य है ।। आगे कहे जे इंद्रिय तिनिकी संज्ञा तथा अनुक्रम प्रतिपादन अर्थि सूत्र कहै हैं--
॥ स्पर्शनरसनघ्राणचक्षुःश्रोत्राणि ॥ १९॥
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