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ఆలంకలపండువందలమాలలు
॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ तृतीय अध्याय ॥ पान ३३९॥ तिनिके स्पर्शन आदिकरि नष्ट होय जाय तहां जिनके पादका स्पर्शनांही औषध तथा थूकही औषध तथा पसेव सहत रज सो जल्ल कहिये सोही औषधी तथा कान दांत नासिका नेत्रका मलही औषधी तथा विमल तथा मूत्रही औषधी तथा अंग उपांग नख दंत केश आदिक स्पर्शी पवन आदि सर्वही औषधी, तथा तीव्र जहरका मिल्याभी आहार जिनिकै सुखमैं गये विषरहित हाय ते आस्याविष हैं, तथा जिनिके देखनेमात्रकरिही तीव्र जहर दूरि हो जाय सो दृष्टयविष है ऐसें आठ औषधी ऋद्धि हैं । बहुरि सातमी रसऋद्धि है । सो छह प्रकार है । तहां महातपस्वी मुनि जो कदाचित् क्रोध उपजै काकू कहै तूं मरि तौ तिनिके वचनतें तत्क्षण मरै ते आस्यविष हैं । बहुरि कदाचित् क्रोधकरि क्रूरदृष्टीकरि देखै तौ पैला मरि जाय सो दृष्टिविष है । बहुरि विरसभी भोजन जिनकै हस्तविर्षे पड्या क्षीररसरूप हो जाय तथा जिनिका वचन दुर्बलकू क्षीरकीज्यों तृप्ति करै सो क्षीरसावी है । बहुरि जिनिके हस्तविर्षे पड्या आहार नीरसभी होय सो मिष्टरसवीर्यपरिणामरूप होय जाय तथा जिनिका वचन सुननेवालेनिके मिष्टरसके गुणज्यों पुष्ट करै सो मधुस्रावी है । बहुरि जिनिके हस्तविर्षे पड्या अन्न रूक्षभी होय सो घृतरसका वीर्यके पाकळू प्राप्त होय तथा जिनिका वचन घृतकीज्यों प्राणीनिकू तृप्ति करै सो सर्पिःश्रावी है। बहुरि जिनिके हस्तविर्षे पड्या
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