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॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ तृतीय अध्याय ॥ पान ३४५ ॥
होय तिस द्वीप तथा समुद्रकी सूचीप्रमाण चौडा अर ऊंडा हजार योजनहीका अनवस्थाकुंड करी सरसूंसौ भरै | अरु एक सरसूं अन्य ल्याय शलाका कुंडमैं गेरै । अनवस्थाकी सरसूं तहांतें अगि द्वीप तथा समुद्रमैं एक एक गेरता जाय तब तेऊ सरसूं जिस द्वीप तथा समुद्रमैं बीतें तहां तीसरा अनवस्थकुंड तिस द्वीप तथा समुद्रकी सूचीप्रमाणकरि सरसूंसौ भरै । अर एक सरसूं अन्य शलाकाकुंड में गेरै । ऐसेही अनवस्थाकी सरसूं एकएक द्वीप तथा समुद्रमैं गेरता जाय, ऐसे अनवस्था तो वधता जाय अर एकएक सरमूं शलाकाकुंडमें गेरता जाय तब एक शलाकाकुंड भरि जाय । ऐसें कर छियालीस आंकप्रमाण अनवस्थकुंड वर्णै तब एक शलाकाकुंड भन्या । तब एक सरं प्रतिशलाकाकुंड में गेरै । वहरि उस शलाकाकुंडकू रीता करिये अर आगे आगें अनवस्थाकूं पूर्वोक्तरीतिकरि वधै एकएक सरसूं शलाका कुंडमें गेरते गये तब दूसरा शलाकाकुंड भन्या । तब फेरि एक सरसं प्रतिशलाकाकुंड में गेरे । बहुरि तिस शलाकाकुंडकं रीता करि तिसही विधानकार तिसरा शलाकाकुंड भया । ऐसें करतें करतें छियालीस अंकनिप्रमाण शलाकाकुंड भरि चुकै । तब एक प्रतिशलाकाकुंड भरै । तब एक सरसूं महाशलाका कुंडवि गरे । बहुरि ऐसे दीपसमुद्रनिमैं सरसूं गेरता जाय अनवस्थकुंड वधते जाय शलाकाकुंड भरि भरि रीते करते जाय, प्रतिशलाका कुंड में
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