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॥ सर्वार्थसिद्धिवमनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ तृतीय अध्याय ॥ पान ३४७ ॥
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गुणिये जो परिमाण आवै सो जघन्य असंख्यातासंख्यात है । याकै ऊपरि एक एक वधता एक घाटि उत्कृष्ट असंख्यातासंख्यातपर्यंत मध्य असंख्यातासंख्यातके भेद हैं। एक घाटि परीतानंतप्रमाण उत्कृष्ट असंख्यातासंख्यात है । अब जघन्यपरीतानंत कहिये है । जघन्य असंख्यातासंख्यात परिमाण तीन राशि करनै एकशलाका एक विरलन एक देय। तहां विरलनराशिकू एकएक जुदा जुदा वखेरनां । एक एककै ऊपरि एक एक देयराशि धरनां । बहुरि तिनिफू परस्पर गुणिये । ऐसें करि शलाका राशिमैसूं एक घटावना । बहुरि जो परिमाण आया ताकै परिमाण दोय राशि करनां । तहां एकराशिका विरलनकरि एक एककै परि देयराशीका स्थापना करि परस्पर गुणिये । ऐसें करि उस शलाकाराशिमैसूं एक ओर घटाय देना । बहुरि जो परिमाण आया तितनै परिमाण दोय राशी करनां । एकका विरलनकरि देयराशीकू एकएक परि देय परस्पर गुणतें जो परिमाण आया तिस परिमाणन देयराशीकीर परस्पर गुणनां । अरु शलाकाराशीमेंसूं एकएक घटाता जाना तब वह शलाकाराशी सर्व पूर्ण होय जाय । तब तहां जो कछू परिमाण हुवा सो यह असंख्यातासंख्यातका मध्यभेद है । सो तितने परिमाण तीन राशी फेरि करनां । शलाका विरलन देय । तहां विरलनराशीको एक एक वखेरी एक. एक परि देयराशि देनां । परस्पर गुणिये तब शलाकाराशीमस्यों एक
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