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॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ तृतीय अध्याय ॥ पान ३४८॥ काढि लेनां । बहुरि जो परिमाण आया ताका विरलन करि एक एक परि एक एक राशी देय परस्पर गुणिये तब शलाकाराशीमेंसों एक और काढिलेनां । ऐसें करते करतें दूसरी बार कीया शलाकाराशी पूर्ण होय । तब जो परिमाण आया सोभी मध्य असंख्यातासंख्यातका भेद है । बहुरि इस परिमाण
शलाका आदि तीन राशि स्थापने तहां विरलन राशीकू वखेर एक एककै स्थान देय राशि देय | परस्पर गुणिये । तर तीसरा शलाका राशीमस्यौं एक काढि लेनां । बहुरि जो परिमाण आया सिस | परिमाण दोय राशीकरि विरलनकू वखेरि देयकू देय परस्पर गुणिये । तब शलाकामैसूं एक और | काढि लेनां । ऐसें करतें करतें तीसरी शलाकाभी पूर्ण होय । तब शलाकात्रय निष्ठापन हूंवा कहिये । | आगैभी जहां शलाकात्रय निष्ठापन कहे तहां ऐसेंही करनां । अब ऐसें करतें जो मध्य असंख्याता- | | संख्यातका भेदरूप राशि भया तावि छह राशि मिलावना । धर्मद्रव्य अधर्म लोकाकाश एकजीव | | इनि च्यारोंके प्रत्येक लोकप्रमाण प्रदेश बहुरि लोकके प्रदेशनितें असंख्यात लोकगुणां अप्रतिष्ठित प्रत्येक | | वनस्पति जीवनका परिमाण बहुरि तातेंभी असंख्यातलोकगुणां सप्रतिष्ठित प्रत्येकवनस्पति जीवनिका |
परिमाण ए छह राशि पूर्वोक्तपरिमाणवि मिलाय शलाका विरलन देय राशि करनी । तिनिका | पूर्वोक्त प्रकार शलाकात्रय निष्ठापन करनां ऐसे करतें जो महाराशि मध्य असंख्यातासंख्यातका
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