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। सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ।। चतुर्थ अध्याय ॥ पान ३६१ ॥
॥श्रीवीतरागाय नमः ॥
अथ चतुर्थ अध्यायका प्रारंभ है.
दोहा-- बंदन करि जिनराजकू, आगमश्रवण सु पाय ॥
सुरवर्णन घरनूं सुनूं, ज्यौं सरदा दिढ थाय ॥ १॥ आगें टीकाकार सूचना करै हैं, जो, “ भवप्रत्ययोऽवधिदेवनारकाणां” इत्यादि सूत्रनिविर्षे वारवार देव शब्द कह्या तहां ऐसा न जानिये जो देव कौन है, केई प्रकारके हैं, तिनके निर्णयके अर्थि आचार्य सूत्र कहै हैं
. ॥ देवाश्चतुर्णिकायाः ॥ १॥ याका अर्थ-- देव हैं ते च्यारि हैं निकाय कहिये समूह जिनके ऐसे हैं। देवगति नाम | कर्मका उदय अंतरंगकारण होते वाह्यनिमित्तके विशेषनिकरि द्वीप समुद्र आदिविर्षे जैसे इच्छा होय | तैसेंही क्रीडा करै ते देव कहिये । इहां कोई कहै है कि, सूत्रविर्षे विभक्तिका बहुवचन है सो एक
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