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॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंद कृता ॥ चतुर्थ अध्याय ॥ पान ३७५ ॥
निष्प्रयोजन है । ताका समाधान, जो, इस सूत्र” मनुष्यलोकतै बाहिर अस्तित्वभी जाना जाय है । अवस्थानभी जान्या जाय है, याने दोऊ प्रयोजनकी सिद्धिके अर्थि यह सूत्र है अथवा अन्यप्रकारकरि गमनका अभाव हैके अर्थि तथा कदाकाल गमनका अभावके अर्थिभी यह सूत्र जनना ॥ आगें चौथे निकायकी सामान्यसंज्ञा कहनेकू सूत्र कहै हैं
॥वैमानिकाः ॥ १६॥ ___ याका अर्थ- वैमानिक ऐसा तो अधिकारकै अर्थि ग्रहण है । याके आगें कहसी तिनकू | वैमानिक जानिये ऐसा अधिकार है। बहुरि पुण्यवाननिकू विशेषकरि माने ते विमान हैं । तिनमें जे उपजै ते वैमानिक हैं । बहुरि ते विमान तीनि प्रकार हैं । इन्द्रक श्रेणीबद्ध पुष्पप्रकीर्णक । तहां इंद्रकविमान तो इन्द्रकीज्यों बीच तिष्ठें हैं। तिनकी च्याखौं दिशामें आकाशप्रदेशकी श्रेणीकीज्यों तिष्ठे हैं ते श्रेणीबद्ध हैं। बहुरि विदिशानिविर्षे विखरे फूलनिकीज्यों तिष्ठे हैं, तातें ते पुष्पप्रकीर्णक हैं । आगें तिन वैमानिकदेवनिका भेदके ज्ञानके अर्थि सूत्र कहें हैं
॥कल्पोपपन्नाः कल्पातीताश्च ॥ १७॥ याका अर्थ-- ते वैमानिक दोय प्रकार हैं। तहां कल्प जे स्वर्ग तिनकेविर्षे उपजे ते तो
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