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॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ चतुर्थ अध्याय ॥ पान ३७९ ॥ गग्रंथतें जानना । बहुरि नवसु अवेयकेषु ऐसा वचन है, तहां नवशद जुदी विभक्ति करनेका यहु प्रयोजन है । जो ग्रैवेयकतें जुदा नव विमान अनुदिश नाम धारक हैं ऐसा जनाया है। तातें अनुदिशका ग्रहण करना । इनके सौधर्मकल्पतें लगाय अनुत्तरपर्यन्त उपरि उपरि तिरेसठि पटल हैं । तहां प्रथमयुगलमें तो इकतीस पटल हैं । द्वितीय युगलमें सात पटल हैं। तीसरे युगलमें च्यारि पटल हैं। चौथे युगलमें दोय पटल हैं । पांचवां युगलका एकही पटल है । छठा युगलका एक पटल है । सातमा आठमा युगलके छह पटल हैं । ऐसें बावन पटल तौ स्वर्गनिके हैं । बहुरि नवग्रैवेयकके नव पटल हैं । बहुरि एक अनुदिशका, एक पंचअनुत्तरका ऐसै तिरेसठि पटल जानने ॥
आगें इन वैमानिकदेवनिकें परस्पर विशेष है, ताके जनावनकें अर्थि सूत्र कहें हैं॥ स्थितिप्रभावसुखद्युतिलेश्याविशुद्धीन्द्रियावधिविषयतोऽधिकाः ॥ २० ॥
याका अर्थ- वैमानिक देव हैं ते स्थिति प्रभाव सुख युति लेश्याकी विशुद्धि इन्द्रियनिका विषय अवधिका विषय इनकरि उपरिउपरि स्वर्गस्वर्गप्रति तथा पटलपटलप्रति अधिकअधिक हैं । तहां अपनी आयुके उदयतें तिस भववि शरीरसहित तिष्ठना, सो स्थिति कहिये, बहुरि परके उपकार तथा अपकार करनेकी शक्तिकू प्रभाव कहिये; बहुरि इंद्रियविषयका भोगवना, सो सुख है
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