________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Sh Kalassagarsuri Gyanmandir
॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ तृतीय अध्याय ॥ पान ३५९॥
| अदृष्टगुण कहिये पूर्वकर्मके संबंधते भया कहै, तो ईश्वरकै कर्मका कीया पराधीनपणा ठहरै । बहुरि कहै जो पृथिवी आदिरूप ईश्वरकी मूर्ति है, तिनकी उत्पत्तिविर्षे ईश्वरही कारण है । ताकू कहिये, जो, ऐसें तो सर्वही आत्मा अपनी अपनी मूर्तितें अपने अपने शरीरकी उत्पत्तिके कारण उहरै तौ कहा दोष ? तहां ईश्वर पृथिवीआदिरूप मूर्ति बणाई तहां अन्यमूर्ति के संबंध बनाई कहिये , तहां| भी अनवस्थादूषण आवै है । बहुरि अनादि मूर्तिका संबंध कहै तो लोककी रचनाही अनादि क्यों न कहिये ? बुद्धिवानका कर्तव्य कहनेकी कल्पना क्यों करिये ?
बहुरि केई निर्देह ईश्वरवादी हैं, ते कहैं, जो, ईश्वर जगतकी रचनाकू निमित्तकारण है सोभी कल्पनाही है । जाते जे मुक्तआत्माकू देहरहित माने हैं, सो जगतका निमित्तकारण नाहीं । तैसे ईश्वरभी देहरहित निमित्तकारण नाहीं । बहुरि कहै मुक्तात्मा तो ज्ञानरहित है। अरु ईश्वरकै नित्य ज्ञान है, तातें कर्तापणा वणे है । ताकू कहिये, जो, नित्यज्ञानके कर्तापणा वणे नाहीं। अनेक नित्यानित्य व्यवस्थारूप जगतर्फे करैगा ताका ज्ञानभी नित्यानित्यरूपही ठहरेगा । बहुरि कोई क्षेत्रमें |
कोई कालमें कार्य उपजै है कोईमें नाहीं उपजै है । अरू ईश्वर सर्वक्षेत्रकालमें व्यापकही है, सो | कार्य नाहीं उपजै, तहां रोकनेवाला कौन है? बहुरि कहै ईश्वरकी इच्छा होय जैसें होय है । तहां ||
Leaderworterilizertilisertiservation
For Private and Personal Use Only