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॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ तृतीय अध्याय ॥ पान ३५७ ॥
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| शुद्धपृथिवीकायिक जीवनिकी उत्कृष्ट आयु तौ बाराहजार वर्षकी है । बहुरि कगेर पृथिवीकायिककी | बाईस हजार वर्षकी है । वनस्पतिकायिककी दशहजार वर्षकी है । अप्कायिककी सातहजार वर्षकी || है। वायुकायिककी तीनि हजार वर्षकी है। तेजकायिककी तीनि दिनरातिकी है। बहुरि विकलत्रयमें दोय इन्द्रियनिकी वारा बरसकी है। तीनि इन्द्रियनिकी गुणचास दिनकी है। चोइंद्रियनिकी छ | महीनाकी है। पंच इन्द्रियनिविर्षे मत्स्यादि जलचरनिकी तौ कोडिपूर्वकी है । बहुरि परिसर्प जे गोह नवल्या आदि तिनकी नवपूर्वांगकी है। बहुरि उरगनिकी बियालीस हजार वर्षकी है। बहुरि पक्षीनिकी बहत्तर हजार वर्षकी है । बहुरि चौपदकी तीनि पल्यकी है । ऐसें तो उत्कृष्ट है । बहुरि जघन्य इन सर्वहीकी अंतर्मुहूर्तकी है । इहां कोई पूछे, भवस्थिति कायस्थिति कही, तिनका अर्थ कहा ? ताका समाधान- एकभवकी स्थितिकू तो भवस्थिति कहिये । बहुरि एककायमें अनेक भव धारै ताकू कायस्थिति कहिये । जैसें पृथिवी अप् तेज वायुकायिक जीवनिके कायास्थिति असंख्यातलोकप्रमाण है, तिनहीमें उपजवौ करै तौ एता कालताईं उपजवौ करै । बहुरि वनस्पतिकायका अंतकाल है सो असंख्यातपुद्गलपरिवर्तनमात्र है। बहुरि विकलत्रयका असंख्यातहजार वर्ष । है । पंचेन्द्रियनिकी तिर्यंचमनुष्यनिकी पृथक्त्वकोटिपूर्व अधिक तीनि पल्य है । बहुरि जघन्य
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