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॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ तृतीय अध्याय ॥ पान ३५५ ॥
| है । बहुरि क्षेत्रमान दोय प्रकार है अवगाहक्षेत्र विभागक्षेत्र । तहां अवगाहक्षेत्र तो एक दोय तीन च्यारि संख्यात असंख्यात पुद्गलके परमाणुके स्कंधनिकरि अवगाहने योग्य जो एकतै ले असंख्यात आकाशके प्रदेश हैं सो अनेकप्रकार हैं। बहुरि विभागक्षेत्र अनेकप्रकार है असंख्यातश्रेणीरूप तथा घनांगुलक्षेत्ररूप । ताके असंख्यातवां भाग एक तथा ताके बहुभाग इत्यादि तथा वितस्ति हाथ धनुष इत्यादि ॥ बहुरि कालमान सर्वजघन्यकाल तौ एकसमयकू कहिये । सो एक पुद्गलका परमाणु एक आकाशका प्रदेशमैं तिष्ठता मंदगति दूसरे आकाशके प्रदेशमैं आवै तेता कालकू समय कहिये, सो कालका निर्विभाग एक अंश है। बहुरि असंख्यातसमयनिकी एक आवली कहिये । बहुरि संख्यात आवलीका एक उछ्वास है, तेताही निश्वास कहिये । ते दोऊ निरुपद्रव निरोगी पुरुषका एक प्राण कहिये, ऐसे सात प्राणका एक स्तोक कहिये । ऐसा सात स्तोकका एक लव कहिये, सतहत्तरि लवका एक मुहूर्त कहिये । तीस मुहूर्तका एक रातिदिन कहिये । पंदरा दिनका एक पक्ष है । दोय पक्षका एक मास है । दोय मासका एक ऋतु है । तीनि ऋतुका एक अयन है। दोय अनयका एक संवत्सर है। चौराशी लाख वर्षका एक पूर्वांग है । | चौरासी लाख पूर्वांगका एक पूर्व है । ऐसीही तरह वधता पूर्वांग, पूर्व, नयुतांग, नयुत, कुमुदांग,
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