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॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ तृतीय अध्याय ॥ पान ३५३ ॥
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व्यवहार उद्धार अद्धा । तहां पल्य नाम खाडेका है। तहां आदिका व्यवहारपल्य तो उत्तर दोय पल्यकी उत्पत्ति जाननेके अर्थि है । इसतें कछु अन्य वस्तुका प्रमाण न करिये । बहुरि दूसरा
उद्धारपल्यतें दीप समुद्र गिणिये है । बहुरि तीसरा अद्धापल्यतै आयुकर्मादिकी स्थिति गिणिये है । || तहां प्रमाणांगुलप्रमाणकरि एक योजनका चोडा लांबा ऊंडा तीन खाडा कीजिये। जामैं एकतें ले
सात दिनतांईका भया मीडा उत्तमभोगभूमिका ताका बालके अग्रभाग कतरणीतें छेदिये । ऐसे खंड करिये ताका फेरि कतरणीतें दूसरा खंड न होय । ऐसे रोमखंडनितें व्यवहारपल्यनामा खाडा खूदि खूदि गाढा परिपूर्ण भरिये । तामै पैतालीस अंकपरिमाण रोम माये । तिनि रोमनिकू सौ वर्षमैं एकएक रोम काढिये । तब जेता कालमै खाडा रीता होय तेता काल व्यवहारपल्यका है। बहुरि तिनि रोमनिके एकएकके असंख्यातकोडिवर्षके जेते समय होय तेते तेते खंड करिये । एकएक
समयमैं एकएक रोम काढिये । जेते कालमें निकसि चुकै तेता काल एक उध्दारपल्यका है। ऐसे | दस कोडाकोडि उद्धारपल्य होय तब एक उद्धारसागरोपम कहिये । ऐसे अढाई सागरके जेते समय
तेते द्वीप समुद्र हैं । बहुरि उद्धारपल्यके रोमछेद हैं तिनिके एक एक रोमछेदके सौ वर्षके जेते | समय होय तेते तेते खंड करिये । तिनिकू एक एक समयमैं काढिये । यामैं जेता काल लागे
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