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॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पाडत जयचंदजीकृता ॥ तृतीय अध्याय ॥ पान ३५२ ॥
भोगभूमीके मनुष्यके बालका अग्रभाग कहिये । आठ ते मिलै तब एक जघन्यभोगभूमीका मनुष्यका बालका अग्रभाग है । ते आठ मिलै तब कर्मभूमिके मनुष्यका बालका अग्रभाग होय । ते आठ मिलिये तब एक लीष कहिये । आठ लीष मिले तब एक यूका कहिये । आठ यूका मिलै तब एक यवमध्य होय । आठ यवमध्यका एक उत्सेधांगुल कहिये । इस अंगुलकरि नारकी तिर्यंच मनुष्य देवनिका देह तथा अकृत्रिम जिनप्रतिमाका देह मापिए है । बहुरि पांचसै उत्सेधांगुलका एक प्रमाण-अंगुल हो है । सो यहु प्रमाण-अंगुल अवसर्पिणी कालका पहला चक्रवर्तिका हो है । तिस समय तिस अंगुलकरि गांव नगरादिकका प्रमाण हो है । अन्यकालमें मनुष्यनिका अपना अपनां अंगुलका प्रमाण होय तिसतै ग्राम नगरादिकका प्रमाण जाननां । बहुरि जो प्रमाणांगुल है ताहीकरि द्वीप समुद्र तथा तिनिकी वेदी पर्वत विमान नरकके प्रस्तार
आदि अकृत्रिम वस्तुका विस्तार आयाम आदि मापिये है। तहां छह अंगुलका एक पाद कहिये । || बारह अंगुलका एक वितस्ति कहिये । दोय वितस्तिका हाथ कहिये । दोय हाथका एक किकु कहिये।। | दोय किकुका एक धनुष्य कहिये । दोय हजार धनुष्यका एक कोश कहिये । च्यारि कोशका | | एक योजन कहिये । ऐसें जाननां । आगै पल्यका प्रमाण कहिये है । तहां पल्य "
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