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॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ तृतीय अध्याय ॥ पान ३४६ ॥
एक एक सरसू गेरता जाय तब प्रतिशलाकाकुंड भरते जाय | तब इसही विधानकरि एक एक सरसूं महाशलाकाकुंडमैं गेरतें गेरतें छियालीस आंकाप्रमाण प्रतिशलाकाकुंड भरै । तब एक एक महाशलाकाकुंड भरि जाय । तहां अनवस्थकुंड केते भये? छियालीस अंकनिका घनकरि एते ते अनवस्थकुंड भये। तिनिमें जो अंतका अनवस्थकुंड जिस द्वीप तथा समुद्रकी सूचीप्रमाण भया तामैं जेते सरतूं माये तेता परिणाम जघन्यपरीतासंख्यातका जाननां । बहुरि जघन्यपरीत असंख्यातकै ऊपरि एकएक वधता मध्यपरीतासंख्यातके भेद जाननां । बहुरि एक घाटि जघन्य युक्तासंख्यात प्रमाण उत्कृष्ट परीतासंख्यात जाननां। अब जघन्ययुक्तासंख्यातका परिमाण कहिये है। जघन्य परीतासंख्यातका विरलन करिये । बहुरि एकएक ऊपरि एक एक परीतासंख्यात मांडि परस्पर
गुणिये । पहलांसू दूसराकरि गुणिये जो परिमाण आवै ताकू तीसरासूं गुणिये जो परिमाण आवै || ताकू चौथासूं गुणिये ऐसे गुणते अंतविर्षे राशी होय सो जघन्ययुक्तासंख्यात है। एते आवलीके
समय हैं । बहुरि याके ऊपरि एक एक वधता एक घाटि उत्कृष्टयुक्तासंख्यात पर्यंत मध्ययुक्तासंख्या. तके भेद हैं । बहुरि एक घाटि जघन्य असंख्यातासंख्यातपरिमाण उत्कृष्ट युक्तासंख्यात है । अब जघन्य असंख्यातासंख्यात कहिये है । जघन्य युक्तासंख्यातकुं जघन्ययुक्तासंख्यातकरि एकवार
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