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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ तृतीय अध्याय ॥ पान ३४५ ॥ होय तिस द्वीप तथा समुद्रकी सूचीप्रमाण चौडा अर ऊंडा हजार योजनहीका अनवस्थाकुंड करी सरसूंसौ भरै | अरु एक सरसूं अन्य ल्याय शलाका कुंडमैं गेरै । अनवस्थाकी सरसूं तहांतें अगि द्वीप तथा समुद्रमैं एक एक गेरता जाय तब तेऊ सरसूं जिस द्वीप तथा समुद्रमैं बीतें तहां तीसरा अनवस्थकुंड तिस द्वीप तथा समुद्रकी सूचीप्रमाणकरि सरसूंसौ भरै । अर एक सरसूं अन्य शलाकाकुंड में गेरै । ऐसेही अनवस्थाकी सरसूं एकएक द्वीप तथा समुद्रमैं गेरता जाय, ऐसे अनवस्था तो वधता जाय अर एकएक सरमूं शलाकाकुंडमें गेरता जाय तब एक शलाकाकुंड भरि जाय । ऐसें कर छियालीस आंकप्रमाण अनवस्थकुंड वर्णै तब एक शलाकाकुंड भन्या । तब एक सरं प्रतिशलाकाकुंड में गेरै । वहरि उस शलाकाकुंडकू रीता करिये अर आगे आगें अनवस्थाकूं पूर्वोक्तरीतिकरि वधै एकएक सरसूं शलाका कुंडमें गेरते गये तब दूसरा शलाकाकुंड भन्या । तब फेरि एक सरसं प्रतिशलाकाकुंड में गेरे । बहुरि तिस शलाकाकुंडकं रीता करि तिसही विधानकार तिसरा शलाकाकुंड भया । ऐसें करतें करतें छियालीस अंकनिप्रमाण शलाकाकुंड भरि चुकै । तब एक प्रतिशलाकाकुंड भरै । तब एक सरसूं महाशलाका कुंडवि गरे । बहुरि ऐसे दीपसमुद्रनिमैं सरसूं गेरता जाय अनवस्थकुंड वधते जाय शलाकाकुंड भरि भरि रीते करते जाय, प्रतिशलाका कुंड में For Private and Personal Use Only
SR No.020662
Book TitleSarvarthsiddhi Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Pandit
PublisherKallappa Bharmappa Nitve
Publication Year1833
Total Pages824
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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