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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallassagarsuri Gyanmandir ॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ।। तृतीय अध्याय ॥ पान ३४४ ।। कालका समयसमूह । भावमानविर्षे जघन्य सूक्ष्मनिगोदिया लब्धि अपर्याप्तका लब्ध्यक्षरज्ञानका अ विभागप्रतिच्छेद, उत्कृष्ट केवलज्ञान । बहुरि द्रव्यमानका दोय भेद एक संख्यामान एक उपमामान । तहां संख्यामानके तीन भेद संख्यात असंख्यात अनंत । तहां संख्यात जघन्य मध्य उत्कृष्टकरि तीन प्रकार है । बहुरि असंख्यात है सो परीतासंख्यात युक्तासंख्यात असंख्यातासंख्यात इनि तीहीके जघन्य मध्य उत्कृष्टकरि नव भेद हैं। बहुरि अनंत है सो परीतानंत युक्तानंत अनंतानंत इनि तीनूंके जघन्य मध्य उत्कृष्टकरि नव भेद हैं । ऐसें संख्यामानके इकईस भेद भये । तिनिविर्षे जघन्यसंख्यात दोय संख्यामात्र है । बहुरि तीनकू आदि देकरि एक घाटि उत्कृष्ट संख्यातपर्यंत मध्यमसंख्या है। बहुरि एक घाटि जघन्य परीतासंख्यात प्रमाण उत्कृष्टसंख्यात जाननां । सो जघन्य परीतासंख्यातके जाननेकै अर्थि उपाय कहै हैं । अनवस्था शलाका प्रतिशलाका महाशलाका नामधारक च्यारि कुंड करने । तिनिका जुदा जुदा प्रमाण जंबूद्वीप प्रमाण चौडा एक हजार योजनका ऊंडा जाननां । तिनिमें अनवस्थाकुंड• गोलसर करि तिघाऊ भरणा । तामै छियालीस आंका परिमाण सरतूं मावै, तब अन्य एक सरसूं शलाकाकुंडमैं नाखि कोई मनुष्य बुद्धिकार तथा | देव हस्तादिकरि जंबूद्वीपादिकमें एक सरसू द्वीपमें एक समुद्रमें गेरता जाय तब वे सरसूं जहां पूर्ण || NAGAPAGAPAPARNAGARPARMPARRORIGIPRONICASPLORFASPROGRAPAR For Private and Personal Use Only
SR No.020662
Book TitleSarvarthsiddhi Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Pandit
PublisherKallappa Bharmappa Nitve
Publication Year1833
Total Pages824
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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