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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobetirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ तृतीय अध्याय ॥ पान ३४३ ॥ तिनिकू भोगभूमि कहिये है ॥ आगें, कही जो भूमि, तिनिविर्षे मनुष्यनिकी स्थितिके अर्थि सूत्र कहै हैं नृस्थिती परावरे त्रिपल्योपमान्तर्मुहूर्ते ॥ ३८॥ याका अर्थ- मनुष्यनिकी उत्कृष्टस्थिति तौ तीन पल्यकी है । बहुरि जघन्यस्थिति अंत. मुहूर्तकी है। मध्यके अनेक भेद हैं । मुहूर्त नाम दोय घडीका है । ताके मध्य होय सो अंत मुहूर्त है । इहां कोई पूछे, जो, पल्य कहा? तहां पल्यका जाननेकै अर्थि प्रसंग पाय प्रमाणका विधानरूप गणती लिखिये है । तहां प्रमाण दोय प्रकार है । एक लौकिक, दूसरा अलौकिक । तहां लौकिक छह प्रकार है । मान, उन्मान, अवमान, गणमान, प्रतिमान, तत्प्रतिमान । तहां पायी माणी इत्यादिक मान जाननां । ताखडीका तोल उन्मान जाननां । चलू इत्यादिकका परिमाण अवमान जाननां । एक दोय आदि गणमान जाननां । चिरम तोला मासा आदि प्रतिमान जानना। घोडाका मोल इत्यादिक तत्पतिमान जाननां । बहुरि अलौकिक मानके च्यारि भेद हैं द्रव्य क्षेत्र काल भाव । तहां द्रव्यमानविर्षे जघन्य एक परमाणु उत्कृष्ट सर्वपदार्थनिका परिमाण । क्षेत्रमानविर्षे जघन्य एकप्रदेश, उत्कृष्ट सर्व आकाश । कालमानविर्षे जघन्य एकसमय उत्कृष्ट तीन aatspirserasexseresssertsoriterioxick20se. For Private and Personal Use Only
SR No.020662
Book TitleSarvarthsiddhi Vachanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychand Pandit
PublisherKallappa Bharmappa Nitve
Publication Year1833
Total Pages824
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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