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सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ द्वितीय अध्याय ॥ पान २८७॥ सो इहां सूत्रपाठमें अंतविर्षे कार्मण कह्या है सो अंत्य है । बहुरि इंद्रियद्वारिकरि शब्दादिकका ग्रहण सो उपभोग है । तिसका जाकै अभाव सो निरुपभोग है। सो ऐसा कार्मणशरीर है । जातें विग्रहगति अंतरालविर्षे इंद्रियनिकी क्षयोपशमरूप लब्धि होतेंभी द्रव्येंद्रियकी निवृतिका अभाव है । तातें शब्दादिकका उपभोगका तहां अभाव है । इहां कोई तर्क करै है, जो, तैजसभी निरुपभोग है, कार्मणही निरुपभोग कैसे कह्या ? ताका समाधान, तैजसशरीरका इहां उपभोगका विचारविर्षे अधिकार नाहीं । जातें याकू योगनिमित्तभी नाहीं कह्या है, ऐसें जाननां ॥
आगें पूछे है, जो, तीन प्रकार जन्म कहे तिनिविर्षे ए शरीर उपजै है, सो तीनूंही जन्मविर्षे अविशेषकरि उपजे है, कि किछु विशेष है? तहां कहे हैं, विशेष है, ताका सूत्र कहे हैं
॥ गर्भसम्मूछेनजमाद्यम् ॥४५॥ ___याका अर्थ-- आदिका शरीर औदारिक सो गर्भते तथा संमूर्छन” उपजै है ॥ सूत्रपाठ | अपेक्षा आदिविणे होय सो आद्य कहिये, सो औदारिक लेना । जो गर्भतें उपजै बहुरि संमूर्छनतें उपजै सो सर्व औदारिक जाननां ॥
आगें, इसकै लगता कह्या जो वैक्रियिक, सो कैसे जन्मविर्षे उपजे है? ऐसें पूछ |
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