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॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ तृतीय अध्याय ।। पान २९८ ॥
॥ नमो वीतरागाय ॥ ॥ आगै तीसरा अध्यायका प्रारंभ है ॥
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दोहा- अधो मध्य ऊरध सकल । जीवनिवास निवारि ॥
कहे भव्य उपकारकू । नमूं ताहि तन टारि ॥ १ ॥ ऐसें मंगल अर्थि नमस्कार करि तीसरे अध्यायकी वचनिका लिखिये हैं । तहां सर्वा | र्थसिद्धि नामा टीकाविर्षे प्रारंभ है जो ‘भवप्रत्ययोऽवधिदेवनारकाणां' इत्यादि सूत्रवि ना. रकर्जाव कहे । तहां शिष्य पूछ है, ते नारकी कौन हैं ? तिनिके प्रतिपादनके अर्थिं प्रथम |* तो तिनिका आधारका निर्देश करे हैं । ते कहां वैसे हैं, तिनि पृथ्वीनिका नाम कहै हैं, ताका सूत्र-- ॥ रत्नशर्करावालुकापङ्कधूमतमोमहातमःप्रभाभूमयो घनाम्बुवाताकाशप्रतिष्ठाः
सप्ताधोऽधः ॥१॥ याका अर्थ-- रत्नप्रभा शर्कराप्रभा वालुकाप्रभा पंकप्रभा धूमप्रभा तमप्रभा महातमःप्रभा
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