________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobetirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ तृतीय अध्याय ॥ पान ३१०॥ समुद्र हैं ॥ जम्बूद्वीपादिकं तौ दीप बहुरि लवणोदादिक समुद्र ऐसे जे लोकमें भले भले नाम हैं ते इनि द्वीपसमुद्रनिके हैं । तहां जंबुद्धीप तौ द्वीप बहुरि लवणोदधि समुद्र, धातकीखंड दीप कालोदधि समुद्र, पुष्करवरद्वीप पुष्करवर समुद्र, वारुणीवर द्वीप वारुणीवर समुद्र, क्षीरवरद्वीप क्षीरवर समुद्र, घृतवरद्वीप घृतवर समुद्र, इश्वरद्वीप इक्षुवर समुद्र, नंदीश्वरवर द्वीप नंदीश्वरवर समुद्र , अरुणवरद्वीप अरुणवर समुद्र, ऐसै असंख्यात द्वीप समुद्र स्वयंभूरमणपर्यंत जानने ॥
इहां विशेष जो, जंबूद्वीपका नाम जंबूवृक्ष यामें है ताते याकी अनादितें यह संज्ञा है। सो यह जंबूवृक्ष कहा है सो कहिये हैं । उत्तरकुरु भोगभूमिविर्षे पांचसै योजनकी चौडी एक जगती कहिये पृथिवी है । ताळू स्थानीभी कहिये । ताकी क्यूं अधिक तिगणी परिधि है । सो बाह्यतें केते एक प्रदेश क्रमहानिरूप छोडि बीचिमें वारा योजन ऊंची है । फेरि क्यों प्रदेश क्रमहानिरूप छोडि अंतमें दोय कोस उंची है । ताकै चौगिरिद सुवर्णमयी पद्मवर वेदिका कहिये भीति है । ताकै बीचिही वीचि नानारत्नमय पीठ है। आठ योजनका लांबा है। च्यारी | योजनका चौडा है । च्यारीही योजनका ऊंचा है । ताकै चौगिरिदा बारह वेदिनिकरि बैड्या है। तिनि | | वेदिनिके चान्यों तरफ च्यारी तोरण हैं । ते श्वेत हैं। सुवर्णके तूयनिकरि सहित हैं । ता पीठके ऊपरि |
For Private and Personal Use Only