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ఉంగుల పూలమాలలు వndertainలను
॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ तृतीय अध्याय ॥ पान ३१४ ॥ हक्षेत्र है । बहुरि नीलकुलाचलके उत्तरादिशाने अरु रुक्मिकुलाचलके दक्षिणदिशानें पूर्वपश्चिमके समुद्रके बीचि रम्यक क्षेत्र है । बहुरि रुक्मिकुलाचलते उत्तरदिशाने अरु शिखरिकुलाचलते दक्षिणदिशा. अरु पूर्वपश्चिमके लवणसमुद्रके अंतराल में हैरण्यवतक्षेत्र है । बहुरि शिखरिकुलाचलते उत्तरदिशाने अरु तीनूंही तरफा लवणसमुद्रकै बीचि ऐरावतक्षेत्र है । सो याके विजयार्ध पर्वत तथा रक्ता रक्तोदा नदीकरि भेदे छह खंड भये हैं ॥
आगें पूछे है, कि छह कुलाचल हैं ऐसें कह्या, ते कौंन हैं तथा कैसें व्यवस्थित हैं ? ऐसें पूछ सूत्र कह है॥तद्विभाजिनः पूर्वापरायता हिमवन्महाहिमवन्निषधनीलरुक्मिशिखरिणो वर्षधरपर्वताः११
याका अर्थ-तिनिक्षेत्रनिके विभाग करनेवाले पूर्वपश्चिम लंबे ऐसे हिमवान महाहिमवान् निषध नील रुक्मी शिखरी ए छह कुलाचल हैं। इनि क्षेत्रनिका विभाग करै तिनिकू तद्विभाजन कहिये । बहुरि पूर्वपश्चिम दोऊ दिशाकी तरफ लंबे पूर्वपश्चिम दिशाकी कोटीते लवणसमुद्रकू स्पर्शनेवाले हिमवत् आदि अनादिकालते प्रवर्ती है. संज्ञा जिनिकी क्षेत्रनिके विभागके कारण | हैं, तातें वर्षधर कहिये । ऐसे कुलाचल पर्वत छह हैं। तहां हिमवान तो भरतक्षेत्रकी अरु
ఆకులు కలవకులు ముందుకు
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