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॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ तृतीय अध्याय ॥ पान ३२० ॥
पाठमैं दोय दोय मैं पहली कही जो नदी, ते पूर्वदिशा के समुद्रकूं गई हैं । इहां पहली कही सात नदी पूर्वदिशा गई होयगी ऐसा नांही है । जातें दोय दोयमैंसूं पहली पहली लेणी ऐसें जानना ॥ आगें, पहली पहली तौ पूर्वदिशां गई बहुरि अन्य किसि दिशाकूं गई ? तिनिकी दिशाका विभागकी प्रतिपत्तिकै अर्थि सूत्र कहै हैं-
॥ शेषास्त्वपरगाः ॥ २२ ॥
याका अर्थ -- दोय दोयमें जो अवशेष रही ते नदी पश्चिमके समुद्रकूं गमन करे हैं, ऐसी प्रतीति करनी ॥ तहां पद्मद्रहके पूर्वद्वारतें निकसी जो गंगानदी सो तौ भरतक्षेत्र में होय पूर्वसमु द्र गई । बहुरि पश्चिमारतें निकसी सिंधू सो भरतक्षेत्र में होय पश्चिमदिशाके समुद्रकूं गई । बहुरि उत्तरद्वारतें निकसी रोहितास्या सो हैमवतक्षेत्र में होय पश्चिमकै समुद्र में गई । बहुरि महापद्म के दक्षिणद्वारतें निकसी रोहित नाम नदी सो हैमवतक्षेत्र में होय पूर्वदिशा के समुद्रमैं गई । बहुरि महापद्म के उत्तरद्वारतें निकसी हरिकांता नाम नदी सो हरिक्षेत्र में होय पश्चिम के समुद्रकूं गई । बहुरि तिछि द्रहके दक्षिणद्वारतें निकसी हरितनदी सो हरिक्षेत्र में होय पूर्वदिशा के समुद्रकं गई । बहुरि तिगिंछ द्रहके उत्तरद्वारतें निकसी सीतोदा नदी सो विदेहक्षेत्र में होय पश्चिमसमुद्रकं गई ।
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