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॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ तृतीय अध्याय ॥ पान ३३३ ॥
बहुरि ऋद्धिप्राप्त आर्य सात प्रकार कहे ते इहां आठ प्रकारभी कहे हैं। तहां बुद्धिऋद्धीके अठारह भेद हैं। तहां केवलज्ञान, अवधिज्ञान, मनःपर्ययज्ञान तीन तौ पहलै कहै तेही जानने । बहुरि संवारे क्षेत्रविर्षे जैसे कालादिके सहायतें बीज वोया अनेक फल दे तैसें नोइंद्रिय श्रुतज्ञानावरण वीर्यांतरायके क्षयोपशमके प्रकर्ष होते एकबीजके ग्रहणते अनेकपदार्थका ज्ञान होय सो बीजबुद्धि है। बहुरि जैसै कोठारीके धरे न्यारे न्यारे प्रचुर धान्य बीज विनाश न भये कोठेहीमें धरे है ; तैसैं आपही जाणे जे अर्थके बीज प्रचुर न्यारे न्यारे बुद्धिमैं बणै रहे जिस काल चाहै जिस काल काढे ताकू कोष्ठबुद्धि कहिये । बहुरि पदानुसारी तीन प्रकार अनुश्रोत, प्रतिश्रोत दोऊरूप । तहां एकपदका अर्थतें सुनि आदिविषं तथा अंतवि तथा मध्यविर्षे सर्वग्रंथका अवधारण करना, सो पदानुसारी है । बहुरि चक्रवर्तीका कटक बारह योजन लंबा नव योजन विस्तारमै पडै है । ताविर्षे | गज वाजी ऊंट मनुष्यादिकका अक्षर अनक्षररूप शब्द ते एककाल प्राप्त भये तिनिकू तपके | बलते पाया जो श्रोत्र इंद्रियका बल, तातें समस्तका एककाल श्रवण होय ताकू संभिन्न श्रोत्र
कहिये । बहुरि तपके विशेषकरि प्रगट भया जो असाधारण रसना इंद्रिय श्रुतज्ञानावरण वीयतिरा| यका क्षयोपशम अंगोपांगनामा नामकर्मका उदय जाकै ऐसा मुनिक रसनाका विषय जो नव
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