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॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ तृतीय अध्याय ॥ पान ३२१ ॥
। बहुरि केसरी दहके दक्षिणद्धारतें निकसी सीता नदी सो विदेहक्षेत्रमैं होय पूर्वके समुद्रफू गई। बहुरि केसरी द्रहके उत्तरके द्वारतें निकसी नरकांता नदी सो रम्यकक्षेत्र में होय पश्चिमकै समुद्र में गई
बहुरि महापुंडरीक द्रहके दक्षिणके द्वारतें निकसी नारी नाम नदी सो रम्यकक्षेत्रमैं होय पूर्वके | समुद्रमैं गई। बहुरि महापुंडरीक द्रहके उत्तरके द्वारतें निकसी रूप्यकूला नाम नदी सो हैरण्यवत| क्षेत्रमैं होय पश्चिमके समुद्रकू गई। बहुरि पुंडरीक द्रहके दक्षिणद्वारतें निकसी जो सुवर्णकूला नामा नदी सो हैरण्यवत क्षेत्रमें होय पूर्वके समुद्रकुं गई । बहुरि पुंडरीक द्रहके पूर्वतोरणद्वारतें | निकसी जो रक्ता नामा नदी सो ऐरावतक्षेत्रमें होय पूर्वसमुद्रमें गई। बहुरि पुंडरीक द्रहके पश्चिम तोरणद्वारतें निकसी रक्तोदा नामा नदी सो ऐरावत क्षेत्रमें होय पश्चिम समुद्रमै गई ॥ ____ आगें, इनि नदीनिकी परिवारनदीनिके प्रतिपादनकै अर्थि सूत्र कहै हैं
॥ चतुर्दशनदीसहस्रपरिता गङ्गासिन्ध्वादयो नद्यः ॥ २३॥ याका अर्थ- इहां गंगा सिंधू आदिका ग्रहण कोन प्रयोजन है ? तहां कहै हैं , पूर्वोक्त नदीनिके ग्रहणकै अर्थि है। इहां ऐसी आशंका न करनी; जो, अनंतर सूत्रमैं नदीनिका | नाम हैही इहां फेरि न चाहीये । जाते व्याकरणमैं ऐसी परिभाषा है, जो अनंतरका विधि होय |
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