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॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ तृतीय अध्याय ॥ पान ३१६॥
| मोरके कंठसारिखा है । बहुरि रजतमय रुक्मी है, सो शुक्ल है । बहुरि हेममय शिखरी है, सो पीले पाटसारिखा वर्ण है ॥ आगें इनिका फेरिभी विशेषके अर्थि सूत्र कहै हैं--
॥ मणिविचित्रपाश्र्वा उपरि मूले च तुल्यविस्ताराः ॥ १३॥ याका अर्थ-- इनि कुलाचलनिके पसवाडै तौ मणिनिकरि चित्रित हैं। बहुरि मूलते ले ऊपरितांई समान चौडे हैं। अनेकवर्ण अरु प्रभाव कहिये महिमा इत्यादि गुणनिकरि सहित जे मणि तिनिकरि विचित्रित हैं पार्श्व कहिये पसवाडे जिनिके ऐसे हैं। बहुरि आकार जिनिका मूलतें लगाय मध्य तथा उपरितांई समान है, चौरस भितीकीज्यों बराबर है ।।
आगै तिनि कुलाचलनिके ऊपरि द्रह हैं ते कहिये हैं॥ पद्ममहापद्मतिगिंछकेसरिमहापुण्डरीकपुण्डरीका ह्रदास्तेषामुपरि ॥१४॥
याका अर्थ-- तिनि हिमवत् आदि कुलाचलनि ऊपरि अनुक्रमते पद्म महापद्म तिगिंछ | केसरी महापुण्डरीक पुण्डरीक ए द्रह जानने ॥
___ आगे आदिका जो पद्मद्रह ताका आकारविशेषकी प्रतिपत्तीकै अर्थि सूत्र कहै हैं--
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