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॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ तृतीय अध्याय ॥ पान ३१७ ॥
॥ प्रथमो योजनसहस्रायामस्तदर्द्धविष्कम्भो हृदः ॥ १५॥ याका अर्थ- पद्म द्रह है सो पूर्वपश्चिम दिशातें तौ हजार योजन लंबा है । बहुरि उत्तर दक्षिण दिशाने पांचसै योजनका विस्तार है । बहुरि वज्रमय याका तल है । बहुरि अनेक प्रकारके मणि तथा सुवर्ण तथा रजत तिनिकरि विचित्रित जाका तट है ॥ आगें याका अवगाह कहिये उंडाई जाननेकै अर्थि सूत्र कहै हैं
॥ दशयोजनावगाहः ॥ १६॥ याका अर्थ-"पद्मदहकी उंडाई दश योजन है ॥ आगें, तिस द्रहविर्षे कमल है, ताका सूत्र कहै हैं
तन्मध्ये योजनं पुष्करम् ॥ १७॥ याका अर्थ- या द्रहमैं एक योजन प्रमाण कमल है । तामें कोश कोशके लंबे तौ पत्र हैं। | बहुरि दोय कोशके चौडी बीचिकी कर्णिका है। बहुरि जलके तलतें दोय कोश ऊंचा नाल है । बहुरि एताही पत्रनिकी मोटाई है ॥
आगें अन्य द्रहनिकी लंबाई चौडाई तथा कमलांकी लंबाई चौडाई जनावनेके अर्थि सूत्र कहै हैं
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