________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ तृतीय अध्याय ॥ पान ३१३ ॥
नामा वृक्ष है । ताके नाम” या द्वीपकाभी नाम जंबूद्वीप है ।।
आगे, तहां जंबूदीपविर्षे छह कुलाचलनिकरि भेदरूप कीया ऐसे सात क्षेत्र हैं, ते कोन है? ऐसे पूछे सूत्र कहै हैं
॥ भरतहैमवतहरिविदेहरम्यकहैरण्यवतैरावतवर्षाः क्षेत्राणि ॥ १०॥
याका अर्थ-- तिस जंबूद्वीपविर्षे भरत हैमवत हरि विदेह रम्यक हैरण्यवत ऐरावत ए सात क्षेत्र हैं ॥ इहां भरतादिक संज्ञा अनादिकालतें प्रवर्ते है । इनिकू काहूका निमित्त नांही । तहां जंबूदीपकी दक्षिण दिशाका विभागविर्षे हिमवान् कुलाचले अरु तीन तरफ लवणसमुद्रकै बीचि तो भरतक्षेत्र है, सो चढाया धनुष्यकै आकार है । बहुरि याके विजयार्द्धपर्वततें तथा गंगा सिंधू नदीतें भेद होय छह खंड भये हैं । बहुरि छोटा हिमवान् कुलाचलकी उत्तरदिशा. अरु महाहिमवान् कुलाचलकी दक्षिणदिशा. पूर्वपश्चिमके लवण समुद्रकै बीचि हैमवतक्षेत्र है । बहुरि निषध कुलाचलकी दक्षिणदिशाने अर महाहिमवान् कुलाचलकी
उत्तरदिशानें बहुरि पूर्वपश्चिमके लवणसमुद्रकै अंतराल में हरिक्षेत्र है । वहुरि निषधकुलाच६ लकी उत्तरदिशाने अरु नीलकुलाचलकी दक्षिणदिशानें पूर्वपश्चिमके लवणसमुद्रकै बीचि विदे
assertatutertertaiyartertaireritsapheritsar.
For Private and Personal Use Only