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ఉండదండరగండకంగారు రకులయerterfయం
॥ सर्वार्थासद्धिवचनिका पंडित जयचंद कृता ॥ तृतीय अध्याय ॥ पान ३०१ ॥ | मोटाई सोला हजार योजनकी है बहुरि सातई महातमःप्रभा भूमिकी मोटाई आठ हजार योजनकी है। बहुरि तिनि भूमिनिका अंतर असंख्यात कोडि योजनका जुदा जुदा है । तथा तिर्यकभी एताही है।
भावार्थ- एक एक राजूका अंतराल है । अरु सप्तमी पृथ्वीकै नीचे तो सात राजू तिर्यक् है । पहली पृथिवी मध्यलोक ऊपरि एक राजू तिर्यक् है ॥ इहां अन्यमती कहै हैं , पृथ्वी काछिवाकै आधार है, तथा वराहकै दंतनिपरि है, सो यह कहनां प्रमाणसिद्ध नाही। जातें काछिवा वराहकाभी अन्य आधार कल्पनेका प्रसंग है। तथा कई कहै हैं, पृथ्वीका गोल तो भ्रमता रहे है । अरु ज्योतिश्चक्र स्थिर है। सो यहभी कहना सवाध है । बहरि केई कहै हैं, पृथिवी नीचे चलीही जाय है, अवस्थित नांही । सोभी कहना बनै नांही। इत्यादि अनेक कल्पना करै हैं, सो असत्य है । इहां कोई पूछै, तुमने कह्या ताकी प्रमाणता काहेते करै ? ताईं कहिये, हमारा कहनां सर्वज्ञके आगमकी परंपरातें निर्वाध है , तहां स्याद्वादन्यायकरि युक्तितेंभी सिद्ध है । याकी चरचा श्लोकवार्तिकमें विशेष करी है। तहांतें जाननी ॥
आगें पूछे है, कि ए भूमि हैं तिनिमें नारकीनिके सर्वत्र आवास हैं, कि कहूं कहूं हैं ?
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