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सर्वार्थसिद्धिवचनका पंडित जयचंदजीकृता ॥ तृतीय अध्याय ॥ पान ३०३ ॥
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उद्धांत, संभ्रांत, असंभ्रांत, विभ्रांत, तप्त, त्रस्त, व्युत्क्रांत, अवक्रांत, विक्रांत ऐसे नाम बहुरि शर्कराप्रभाविषै ग्यारह प्रस्तार हैं । तिनिमैं ग्यारहही बीचिवीचि इंद्रक हैं । तिनिके नाम स्तनक, संस्तनक, वनक, घाट, संघाट, जिव्ह, उजिव्हिक, आलोल, लोलुक, स्तन आलोलुक ऐसैं । बहुरि वालुकाप्रभाविषै नव प्रस्तार हैं । तिनिमें नव इंद्रक तिनिकै नाम तप्त, त्रस्त, तपन, आतापन, आदिदाघ, प्रज्वलित, संज्वलित, उज्वलित, संप्रज्वलित ऐसै । बहुरि पंकप्रभाविषै सात प्रस्तार हैं । तिनिमें सात इंद्रक तिनिके नाम आर मार तार वर्चस वैमनस्क खाट आखाट ऐसे | बहुरि धूमप्रभाविर्षे पांच प्रस्तार हैं तहां पांच इंद्रक हैं । तिनिके नाम तम, अभ्र, झष, अंत, तमिस्र ऐसैं । बहुरि तमःप्रभाविषै तीन प्रस्तार हैं । ताविषै तीन इंद्र हैं । तिनिके नाम हिम वर्दल, ललक । बहुरि महातमः प्रभाविषै एक प्रस्तार है । ता अप्रतिष्ठान नामा एक इंद्रक है । तहां इंद्रrनिकै चान्यों दिशामें च्यारि श्रेणी हैं । चान्यों दिशासंबंधी श्रेणीबंध विला तौ गुणचास गुणचास हैं । बहुरि विदिशासंबंधी अठतालीस अठतालीस हैं । पीछे सातई पृथिवीका प्रस्तारतांई एक एक घटता गया सो श्रेणीबंध तो एक एक रह गया । विदिशा में रहाही नांही । ऐसें इनकी संख्या पूर्वे
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