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అంతుందగలరులంతులనం
॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ तृतीय अध्याय ॥ पान ३०५ ॥ अधिके नीचे नीचे जानने । बहुरि नित्य शब्द है सो दुःखमें दुःख चल्याही जाय ऐसे अर्थमें है। तहां पहली दूसरी पृथिवीके जीवनके तो कापोतलेश्या है। बहुरि तीसरी पृथिवीवालेनिके ऊपरिककै तौ कापोत है। नीचलेके नीललेश्या है। चतुर्थीवालेकै नीलही है। पंचमीवालेकै ऊपरिकेकै तौ नील है। नीचलेकै कृष्ण है | छठीवालेकै कृष्ण है। सातमीवालेकै परमकृष्ण है । ऐसे द्रव्यलेश्या तौ आयुपर्यंत एकसी है । बहुरि भावलेश्या अंतर्मुहूर्तमें पलटवो करें है । बहुरि परिणाम स्पर्श रस गंध वर्ण शब्द हैं। ते क्षेत्रका विशेषके निमित्तके वशतें अतिदुःखके कारण
अशुभतर हैं । बहुरि जिनिका देह अशुभनामकर्मके उदयतें अत्यंत अशुभतर है, बुरि आकृति | हुंडकसंस्थानरूप है तिनिकी उंचाई प्रथमपृथिवीविर्षे तौ सात धनुष तीन हात छह अंगुलप्रमाण | है । बहुरि नीचे नीचे दूणा दूणा जाननां । बहुरि नारकीजीवनिकै अभ्यंतर तो असातावेदनीयका उदय होते बहुरि बाह्य अनादिका शीतोष्णरूप पृथिवीका स्वभावकरि उपजी तीव्रवेदना है । तहां पहली दूसरी तीसरी चौथी पृथिवीविर्षे तो विला उष्णही है । बहुरि पंचमीविर्षे ऊपरि तो उष्णवेदनारूप दोय लाख विला हैं । नीचे एक लाख विला शीतवेदनारूप हैं । बहुरि छठी सातमी| विषे शीतवेदनाही है। बहुरि ते नारकी विक्रिया करे, ते आप तो जाणे मै शुभही करौंगा परंतु
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