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॥ सवार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ द्वितीय अध्याय ॥ पान २६४ ॥
सो श्रुतज्ञान है । सो मनहीका विषय है ।
आगें, न्यारे न्यारे विषय जिनके ऐसे कहे जे इंद्रिय, तिनिके स्वामिपणांका निर्देश कीया चाहिये । तहां पहली कह्या जो स्पर्शन इंद्रिय ताका स्वामीपणाका नियमकै अर्थि सूत्र कहै हैं
॥ वनस्पत्यन्तानामेकम् ॥ २२॥ याका अर्थ-- वनस्पति है अंत जिनिकै ऐसे जे पूर्वोक्त पृथिवी अप् तेज वायु वनस्पति तिनिकै एक कहिये एक स्पर्शन इंद्रिय है ।। एक कहिये पहला स्पर्शन इंद्रिय सो पृथिवीतें लगाय वनस्पतिपर्यंत जीवनिकै जाननां । तिस स्पर्शन इंद्रियका उत्पत्तिकारण कहिये है। वीर्यांतराय स्पर्शन इंद्रियावरणनामा ज्ञानावरण कर्मके क्षयोपशम होतें बहुरि अवशेष इंद्रियज्ञानावरणकर्मका सर्वघातिस्पर्दकनिका उदय होतें बहुरि शरीर नामा नामकर्मका उदयका लाभका अवलंबन होतें | एकेंद्रियजाति नामकर्मका उदयके वशवर्तिपणां होते जीवकै एक स्पर्शन इंद्रिय प्रकट होय है । तातें | स्पर्शन इंद्रियके स्वामी पांच स्थावरकायके जीव हैं । ऐसें जाननां ॥
आगें, अन्य इंद्रियानिके स्वामी दिखावनेकै अर्थि सूत्र कहै हैं
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