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॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचंदजीकृता ॥ द्वितीय अध्याय ॥ पान २६२ ॥
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चक्षु अल्पव्यापी है । बहुरि श्रोत्र अंतमैं कह्या, जातें यहु बहु उपकारी है । धर्मश्रवणादि उपकार यातें प्रधानताकरि है । बहुरि इनि इंद्रियनिके विर्षे परस्पर भेदभी है । जाते अपने अपने विषय ग्रहण करै हैं । बहुरि अभेदभी है । जाते भाव इंद्रिय तो एक आत्माहीका परिणाम है । द्रव्यइंद्रिय एक पुद्गलका परिणाम है ॥ आगें इनि इंद्रियनिका विषय दिखावनेकै अर्थि सूत्र कहै हैं
॥स्पर्शरसगन्धवर्णशब्दास्तदर्थाः ॥ २०॥ ___ याका अर्थ-- स्पर्श रस गंध वर्ण शब्द ये पंचेंद्रियनिके पांच विषय हैं । इहां स्पर्शादि शब्दनिकै द्रव्यपर्यायकी प्रधानविवक्षाविर्षे कर्मसाधन तथा भावसाधन जाननां। तहां द्रव्यप्रधान विवक्षावि तौ कर्मसाधन है। जो स्पर्शिये ताकू स्पर्श कहिये । आस्वादिये ताकू रस कहिये । सूंघिये ताकू गंध कहिये । वर्णिये ताकू वर्ण कहिये । जो शब्दरूप होय ताकू शब्द कहिये। बहुरि पर्यायकी प्रधानविवक्षाविर्षे भावसाधन है। स्पर्शना सो स्पर्श है। रसना सो रस है। सूंघना सो गंध है । वर्णना सो वर्ण है । शब्द होना सो शब्द है । बहुरि इनिका अनुक्रम इंद्रि यनिकै अनुक्रमतें कह्या है ।।
ఆయనకు కుండనందులకుండలు
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