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॥ सर्वार्थसिद्धिवचनिका पंडित जयचदं कृता ॥ द्वितीय अध्याय ॥ पान २८३ ।।
| परें परें सूक्ष्म कहे अर परमाणू बहुत बहुत कहे सो ऐसें तौ परें परें बड़े चाहिये । ताका उत्तर,
जो, बंधानका विशेष ऐसाही है, जो खैचि गाढा बांधै तौ छोटा होय जाय , ढीला बांधै तो बडा दीखै जैसे रूईका पिंड तो बडा दीखे वोझ थोडा। बहुरि लोहका पिंड छोटा दीखै वोझ बहुत ऐसे जाननां॥
आगै, अगिले दोय शरीर तैजस कार्मण तिनिमें परमाणु इनिसमान हैं, कि किछु विशेष है? ऐसे पूछै उत्तर कहै हैं
॥ अनन्तगुणे परे ॥३९॥ याका अर्थ-- अगिले दोऊ तैजस कार्मण शरीरविर्षे परमाणु पहलेते अनंतानंत गुणै हैं । इहां प्रदेशतः ऐसी तो पहले सूत्रः अनुवृत्ति लेणी। तातें आहारकतें तेजसविर्षे परमाणु
अनंतगुणे हैं । बहुरि तेजसते अनंतगुणे कार्मणविर्षे हैं । इहां गुणाकार अभव्यराशि अनंतगुणां सिद्धराशिके अनंतवै भाग ऐसा अनंतका है ।।
आगै, आशंका करै है, जो, मूर्तिकद्रव्यका संचय होते जैसे भालि भीतिमें प्रवेश करता रुकि जाय है, तैसैं शरीरसहित संसारी जीव गमन करै तब मर्तिक पदलके स्कंधनि रुकि जाता | होयगा । ताकू कहिये , जो, नांही रुकै है । ए दोऊ शरीर ऐसे हैं । ताका सूत्र कहै हैं
exciteraibiteeritaireritaircritaireritsaxceritsapreriaspith
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